वीडियो जानकारी:
पार से उपहार शिविर, 19.04.20, ग्रेटर नॉएडा, भारत
प्रसंग:
तत्र गतो दंशमशकसमापसदैर्मनुजैः शलभशकुन्ततस्कर- मूषकादिभिरुपरुध्यमानबहिःप्राण: क्वचित् परिवर्तमानो
स्मिननध्वन्यविद्या कामकर्मभिरुपरक्तमनसानुपपननार्थ नरलोकं गन्धर्व- नगरमुपपन्नमिति मिथ्यादृष्टिरनुपश्यति॥
उस गृहस्थाश्रम में आसक्त हुए व्यक्ति के धन रूप बाहरी प्राणों को डाँस और मच्छरों के समान नीच पुरुषों से तथा टिड्ढी, पक्षी, चोर और चूहे आदि से क्षति पहुचँती रहती है। कभी इस मार्ग में भटकते-भटकते यह अविद्या, कामना और कर्मों से कलुषित हुए अपने चित्त से दृष्टि दोष के कारण इस मर्त्यलोक को, जो गन्धर्वनगरके समान असत् है, सत्य समझने लगता है।
~ परमहंस गीता (अध्याय ५, श्लोक ५ )
~ माया से कैसे बचें?
~ माया से बचने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
~ बेहोशी से कैसे बाहर निकले?
संगीत: मिलिंद दाते
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